किताब पढ़ने का फल - पार्ट - 1

ये कहानी नहीं पढ़ा तो कुछ नहीं पढ़ा।

नदी के किनारे बसे एक छोटे से गांव।का बब्लू रोज़ स्कूल जाने से पहले नदी मे आता। नदी मे नहाता नदी के बीचों-बीचों एक शिवलिंग का मंदिर है। वो एक लोटा पानी शिवलिंग मे चढ़ा कर घर चला जाता।

घर जा कर् माँ से कहा- मुझे भूख लगी है खाने मे क्या है, खाने मे जो हर दिन रहता है।वहीं खा ले और चुप चाप स्कूल चला जा।बब्लू स्कूल जाते हि दुकान मे दो सिगरेट, लिया और पीते चला जा रहा था। तभी पीछे-पीछे उसके दोस्त भी आ रहे थे उसके दोस्त अरे बबलू मेरे को भी दे ना मैं भी देखु कैसा लगता है। हाँ हाँ ले तू भी ले पर बोलना किसी को नहीं।नहीं बोलूंगा अच्छा ये बता स्कूल में तुझे कौन सी विषय मे मज़ा आता है।

मुझे हिंदी पढ़ना बहुत अच्छा लगता हैं और ज्यादा कहानी0 पढ़ना।  उसमें रॉयल्टी वाली कहानी मुझे बहुत अच्छी लगी।कैसे उसमें एक आदमी लेखक का मजाक उडाता है।कहता है तुम ये कहानी लिख कर के तुम कौन सा तीर मार लोगे, या तुम्हे  रॉयल्टी  मिलती है। लेखक सोचने लगा क्या मेरी कहानी पढ़ के बो किसान् कितना खुश था।और बो सायकिल का पन्चर् बनाने वाला कैसे मुझे देखते ही मुझे पहचान गया। ये क्या किसी रॉयल्टी से कम है।अच्छा तुम बताओ मुझे पढ़ना अच्छा हि नहीं लगता है।दोनों बात करते स्कूल पहुँच गये।

दूसरे दिन बबलू फिर नदी नहाने पंहुचा नदी के किनारे  एक टीले से कूदने हि वाला था कि उस टीले मे एक बहुत बड़ा सांप लेटा हुआ था। जैसे ही उसकी नज़र सांप मे पड़ी वह तुरंत पीछे हट गया। और जोर जोर से सांसें लेने लगा।और सोचने लगा,

अगर मेरी नज़र अचानक उस सांप के ऊपर नहीं पड़ती तो खा जाता अगर खा जाता तो क्या मैं घर पहुँच जाता।यहाँ पर कोई है भी नहीं कि बो खबर घर तक पंहुचा देता। आह,कितना दुःख होता मेरी माँ को बो जोर -जोर से रोती हुई आती। मुझे बेहोश देखकर जोर-जोर् से अपनी छाती पीटती।आह भगवान ये तूने क्या कर दिया।मेरे लाल मेरे कलेजे के टुकड़े को वापस कर दे,मेरे पापा बार-बार माँ को समझाते और खुद आँखों मे आंसू लिए मेरे चेहरे को छूते।और मन ही मन माँ को झुझलाते और पास खड़े लोगों को कहते,कोई जाओ डाक्टर ,झाड फुक वाले को बुलाओ। तभी मेरी आंखे खुल जाती और मैं अपने माँ की आँखों मे देख कर माँ के सीने से लग जाता।

ये सोचते-सोचते बब्लू को याद आया स्कूल, जाना है।लेकिन यहाँ नहीं आगे पेड़ के पास से जा के कूद जाता हूँ पानी में लेकिन ठण्डी-ठण्डी हवा चल रही थी चारों तरफ घना कोहरा छाया हुआ था। तभी अचानक बब्लू की नज़र आम के पेड़ के नीचे पड़ी वहां जाकर देखा। एक आदमी बिना कपड़ो के कांपता हुआ पड़ा है।पास जाकर देखा तो उस आदमी की हालत देखने मे बहुत खराब लग रही थी। उससे पूछा आप कौन है। उसने जबाब मे बोला उए आ ये आ बो बोल नहीं सकता था। जिसे हम मूकबधिर बोलते है। तुम यहाँ कितनी देर से हो, 
आ ये आऊ मैं समझ नहीं पा रहा हूँ की आप क्या कह रहे है,
हाथ से इशारा करते हुए पूछा। 

मूकबधिर हाथ से इसारा करते हुए बोला मुझे भूख लगी है,
भूख लगी है। अब खाना यहाँ कहाँ मिलेगा।घर जाऊगा तो वहां
बचा होगा की नहीं।हाथ से इसारा करते हुए कहा रुकना कहीं जाना नहीं मैं खाना लेकर आता हूँ।
दौड़ते हुए घर आया और माँ से पूछा माँ रोटी हैं, रोटी अभी तो खा कर गया है तुझे फिर रोटी चाहिए। हाँ मुझे फिर भूख लगी है,जा जाकर देख ले घर के अंदर गया और देखा कि चार रोटी शाम की बची है, माँ और क्या है, और तो कुछ नहीं तो सुखी रोटी कैसे खायेंगे। जा खिड़की के पास एक डिब्बा रखा है उसमें राई,अम्चुर्,नमक, का मसाला रखा है उसमें थोड़ा सरसो का तेल मिला कर खा ले, माँ गुड ,शक्कर नहीं है।
जा देख ले अगर हो तो ले ले,कहाँ रखा है।आज तुझे नहीं मिल रहा चोरी करना हो तो जल्दी मिल जाएगा। वहीं खिड़की के पास एक डिब्बा है जो होगा उसी मे होगा। जाकर देखा तो उसमें कुछ नहीं था। अब क्या करुँ यही बस लेकर जाऊ बो भी क्या कहेगा की इश्के घर मे यही था राई अम्चुर् का मशाला देख कर कहीं ये ना कहे की मैं नहीं खाऊंगा।फिर और क्या लेकर जाऊं,तो क्या हुआ मैं भी तो खाता हूँ मुझे तो अच्छा लगता है।
अगर कुछ बोला तो बता देंगे कि हमारे घर मे हम सभी लोग खाते है।
बो एक थैली मे चार रोटी और मसाला लेकर शर्ट की बटन खोल कर शर्ट के अंदर छुपा चुपके से चला गया। मूकबधिर उसी रास्ते की ओर टकटकी लगाये बैठा था तभी उसे दूर से बब्लू आता दिखाई दिया।और उसके चेहरे मे मुस्कान दौड़ गई।
रास्ते मे एक आदमी से पूछा-काका माचिस है क्या?
अरे बब्लू मचिस् तू क्या करेगा।बीड़ी पियेगा क्या?
नहीं ठंड बहुत है,आग जलने के लिए।
हाँ दो तीली है,ये ले
बब्लू मचिश लेकर चला गया ।आगे जाकर रास्ते मे घास लिया और आम के पेड़ के पास पहुँच गया। मूकबधिर बबलू को देख कर खुश हो गया।
ये मैं तुमको खाना लेकर आया हूँ अपने शर्ट की बटन खोल कर जो लाया था वो दे दिया और खुद आग जलाने लगा। और बोला तुम आग के पास बैठकर खाना खा लो मैं पानी लेकर आता हूँ।  पर पानी किसमें लाऊ कुछ बर्तन तो है नहीं तभी नदी मे दो औरत नहाते हुई दिखी।जाकर देखा तो मोहल्ले की ही औरते थी।
चाची थोड़ा लोटा दे दो?
किस लिए?
पानी पीने के लिये? 
ये शंकर जी को नहलाने के लिए ताबे का लोटा है।मैं उसमें शंकर जी को नहलाती हूँ?
मैं वापस धो कर दे दूँगा?
नहीं जुठा हो जाएगा मैं नहीं दूंगी।तुम पानी हाथ से पी लो चुल्लु चुल्लु?
मैं अपने लिए नहीं माँग रहा हूँ?
तो किस के लिए माँग रहे हो?
वो आम के पास एक पागल आदमी बैठा है, और वो पानी माँग रहा है?
उसको बता दो आकर हाथ से पी ले इतनी बड़ी तो नदी की धारा बह रही है?
वो खाना खाने बैठा है?
तुम काहे परेशान हो जाओ पढ़ा करो?
वो निरमा पाउडर की थैली खाली है? 
उसमें थोड़ा निरमा होगा दो मैं कपड़ा धो लेती हूँ?
वो निरमा की थैली को अच्छे से धो कर पानी लेके गया। ये लो पानी।
अ आह आ मूकबधिर  पानी लेके पीने लगा पूरा पानी पी के बोला अ आह आ बब्ल् ने पूछा और पानी चाहिए। वो हा मे सर हिलाया।बबलू फिर पानी लेकर आया और पानी दे दिया। मूकबधिर पानी पी कर उसकी ओर  देख कर रो पड़ा।
मानो आज उसको बहुत दिनों मे आज खाना मिला हो उसकी आँखों से आंसु झरने की तरह निकल रहे थे।
उसको देख कर बब्लू की भी आंखें डब-डबा गई। ये थोड़ी सी घास रखी है जला लेना। मुझे स्कूल के लिये देर हो रही है, फिर वापस आ कर मिलूंगा।जैसे ही बबलू उठने को हुआ वो उसका हाथ पकड़ लिया।मानो बो कह रहा हो की मत जाओ नहीं तो मैं दुबारा नहीं मिलुगा......?



                                                       Varun kumar                                      krvarun1993@gmail.com



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